tag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post7088465619850011835..comments2021-09-04T10:37:22.065+05:30Comments on बतकही-रेडियोसखी ममता की। : डायरी के कुछ पन्ने-'मां का विदा हो जाना'radiosakhihttp://www.blogger.com/profile/04343669733306215632noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-14694230665358250402009-12-03T21:57:41.520+05:302009-12-03T21:57:41.520+05:30आपकी स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है. माँ की जग...आपकी स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है. माँ की जगह कोई नहीं भर सकता. शास्त्रों में भी किसी और से पहले माँ के लिए "... देवो भवः" आता है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-55307666890373018622009-11-27T09:25:48.321+05:302009-11-27T09:25:48.321+05:30कुछ कहा पाने की स्थिति में नहीं हूँ... भावुक कर दि...कुछ कहा पाने की स्थिति में नहीं हूँ... भावुक कर दिया आपने तो..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-70401715916228964962009-11-26T19:04:08.395+05:302009-11-26T19:04:08.395+05:30भावुक कर देने वाली पोस्ट.......दुनिया में माँ से ब...भावुक कर देने वाली पोस्ट.......दुनिया में माँ से बढ़कर कोई नहीं है ...समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-169068934158111522009-11-25T20:31:20.750+05:302009-11-25T20:31:20.750+05:30Very Touching Indeed!Very Touching Indeed!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-66188404554128004962009-11-25T14:39:06.377+05:302009-11-25T14:39:06.377+05:30हंसती थी तो घर में घी के दीए जलते थे
फ़ूल साथ में द...हंसती थी तो घर में घी के दीए जलते थे<br />फ़ूल साथ में दामन उसका थामे चलते थे<br />धीरे-धीरे घने बाल वे जाते हुए लगे<br />दोनो आँखो के नीचे दो काले चाँद उगे<br />आज चलन से बाहर जैसे अम्मा आना पाई है!<br />पापा को दरवाजे तक वह छोड़ लौटती थी<br />आंखो में कुछ काले बादल जोड़ वह लौटती थी<br />गहराती उन रातों में वह जलती रहती थी<br />पूरे घर में किरन सरीखी चलती रहती थी<br />जीवन में जो नहीं मिला उन सब की मां भरपाई है!<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!<br />बड़े भागते वह तीखे दिन वह धीमी शांत बहा करती थी<br />शायद उसके भीतर दुनिया कोई और रहा करती थी<br />खूब जतन से सींचा उसने फ़सल फ़सल को खेत खेत को<br />उसकी आंखे पढ़ लेती थी नदी-नदी को रेत रेत को<br />अम्मा कोई नाव डुबती बार बार उतराई है!<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-71580056718684812252009-11-25T14:37:55.025+05:302009-11-25T14:37:55.025+05:30मां पर सुधांशु उपाध्याय की एक कविता यहां लिखने से ...मां पर सुधांशु उपाध्याय की एक कविता यहां लिखने से अपने आप को नहीं रोक पा रहा हूँ।<br /><b>अम्मा</b><br />थोड़ी थोड़ी सी धूप निकलती थोड़ी बदली छाई है<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!<br />शॉल सरक कर कांधों से उजले पावों तक आया है<br />यादों के आकाश का टुकड़ा फ़टी दरी पर छाया है<br />पहले उसको फ़ुर्सत कब थी छत के उपर आने की<br />उसकी पहली चिंता थी घर को जोड़ बनाने की<br />बहुत दिनों पर धूप का दर्पण देख रही परछाई है<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!<br />सिकुड़ी सिमटी उस लड़की को दुनियां की काली कथा मिली<br />पापा के हिस्से का कर्ज़ मिला सबके हिस्से की व्यथा मिली<br />बिखरे घर को जोड़ रही थी काल-चक्र को मोड़ रही थी<br />लालटेन सी जलती बुझती गहन अंधेरे तोड़ रही थी<br />सन्नाटे में गुंज रही वह धीमी शहनाई है!<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!<br />दूर गांव से आई थी वह दादा कहते बच्ची है<br />चाचा कहते भाभी मेरी फ़ुलों से भी अच्छी है<br />दादी को वह हंसती-गाती अनगढ़-सी गुड़िया लगती थी<br />छोटा में था- मुझको तो वह आमों की बगिया लगती थी<br />जीवन की इस कड़ी धूप में अब भी वह अमराई है!<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!<br />नींद नहीं थी लेकिन थोड़े छोटे छोटे सपने थे<br />हरे किनारे वाली साड़ी गोटे गोटे सपने थे<br />रात रात भर चिड़िया जगती पत्ता पत्ता सेती थी<br />कभी कभी आंचल का कोना आँखों पर धर लेती थी<br />धुंध और कोहरे में डुबी अम्मा एक तराई है!<br />बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-47502314650904547312009-11-25T14:30:54.865+05:302009-11-25T14:30:54.865+05:30ममताजी
भाईसाहब से फोन पर माताजी के बारे में जानकर ...ममताजी<br />भाईसाहब से फोन पर माताजी के बारे में जानकर बहुत दुख: हुआ। पिछली पोस्ट पढ़ कर आपके मन की हालत का अंदाजा हो रहा था, लेकिन इस पोस्ट ने हमें रुला दिया। आप नहीं मानेंगी जब मैं ये पंक्तियां टाइप कर रहा हूं तब मेरी आंखों में आंसू हैं।<br />मैं परमपिता से प्रार्थना करता हूं कि मांजी की आत्मा को शान्ति दे, और अपके पूरे परिवार को यह दुख: सहन करने की शक्ति!<br />गुजराती में मां के लिये दो कहावतें प्रसिद्ध हैं जो मैने पहले भी कई बार अलग अलग पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में लिखी है, यहां एक बार फिर लिख रहा हूं।<br /><b>माँ! ज्यारे आँसू आवता हता ने तू याद आवती हती, आजे तू याद आवे छे ने आँसू आवे छे!</b><br /><b>माँ ते माँ, ने बीजा वगड़ा ना वा!</b> <br />आशा है आप दोनों कहावतों का भावार्थ समझ गई होंगी।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-5634983619850739892009-11-24T23:00:14.847+05:302009-11-24T23:00:14.847+05:30श्री ममताजी,
आप की इस पोस्ट पर जाने से पहेले ही यु...श्री ममताजी,<br />आप की इस पोस्ट पर जाने से पहेले ही युनूसजीसे बात की तब, उन्होंनें बताया कि आज कल रेल यात्रा काफ़ी करनी हुई । तब यह पता नहीं था, पर फोन समाप्त करते हुए ही आपकी इस ताझा पर भावूक बातॉ से भरी हुई पोस्ट पढ़ी । मा तो मा ही होती है , पर जो आता है इसको कोई भी निमीत से कभी न कभी जाना ही है और इसी मानसीक आस्वासन ले कर हमें अपनी आगे की झिन्द्ग़ी अपने परिवार के जिये जीनी ही होती है । (शायद पोस्ट का समय मेरे लेपटॉप की घड़ी की गरबडी के कारण गलत दिख़ायें पर यह समय रात्री 11 बजे का है।)<br />पियुष महेता ।<br />नानपूरा, सुरत-395001.PIYUSH MEHTA-SURAThttps://www.blogger.com/profile/12760626174047535862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-38954482706631409612009-11-24T15:29:40.301+05:302009-11-24T15:29:40.301+05:30पिछला लेख पढ़ने के बाद अगले का इंतजार कर रहा था.. श...पिछला लेख पढ़ने के बाद अगले का इंतजार कर रहा था.. शानदार लेखन की तारीफ नहीं करूंगा, शानदार लिखने वाले बहुत हैं यहां.. मगर कम ही ऐसे हैं जो सीधे दिल तक उतर कर किसी बिछड़े की याद दिला जाते हैं..<br /><br />शायद सारी मायें ऐसी ही होती हैं.. पिछला लेख पढ़कर अपनी नानी की याद हो आयी थी.. कमोबेश कुछ ऐसा ही जीवन रहा था उनका.. आपके मन में जो बात घूम रही है उसे मां की ही बात माने.. जादू का ख्याल रखें और उसकी नानी को चंद कहानियों में हमेशा उसके लिये जिंदा रखें..<br /><br />मुझे आपने यादों में ढ़केल दिया.. घर में सबसे छोटा होने के कारण मैं सबसे ज्यादा घर में रहा हूं.. हमेशा मम्मी से चिपका हुआ.. बड़े होने के बाद भी कहीं भी जाओ तो मम्मी के साथ, नहीं तो नहीं.. मगर समय ने कुछ ऐसा खेल खेला की अब साल में एक बार मां-पापा के दर्शन हो जायें तो यह भी बहुत है.. मन बहुत उदास हो चला है उन्हें याद करके, मगर ये जिंदगी उदास होने का भी समय नहीं देती है.. उदास हो जाऊंगा तो काम कौन करेगा?PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-11718248689464502532009-11-24T13:45:05.402+05:302009-11-24T13:45:05.402+05:30ममता जी, अपनी माँ की यादें हमसे बाँटने के लिए आभार...ममता जी, अपनी माँ की यादें हमसे बाँटने के लिए आभार। पढ़ना बहुत अच्छा लगा। मैं भी इस माँ शब्द में उलझी हुई हूँ और इसके साथ जुड़ आए शब्द बुढ़ापे से भी। हर दिन बदलाव देख रही हूँ और दंग होती हूँ, कभी लगता है कि उम्र मनुष्य व रिश्तों को परिवर्तित कर देती है। कल जो माँ थीं वे आज बेटी सी जान पड़ती हैं। और हाँ, अपनी बेटियों को भी अपनी माँ बनते देखती हूँ।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-14737664115819645152009-11-24T12:07:00.655+05:302009-11-24T12:07:00.655+05:30माँ के सहारे की हमेशां ही जरुरत रहती है बिन माँ के...माँ के सहारे की हमेशां ही जरुरत रहती है बिन माँ के घर का आंगन बंजर जमीं सा है !!! बहुत सुन्दर पोस्ट है !!!Murari Pareekhttps://www.blogger.com/profile/16625386303622227470noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-90196117542845897342009-11-24T11:56:05.649+05:302009-11-24T11:56:05.649+05:30ममता जी प्रणाम ,सबसे पहले तो ..ब्लॉग संसार में आपक...ममता जी प्रणाम ,सबसे पहले तो ..ब्लॉग संसार में आपका स्वागत है ,ममता सिंह ,नाम पढ़ते ही आपकी आवाज सुनाई दी, खोला तो आप ही थी ,दरअसल जब भी वक़्त मिलता है बस दोपहर में विविध भारती के साथ सुनती रहती हूँ ....इसलिए आप नई तो नहीं हेँ ....मेरे लिए ...माँ पर बेहद भावुक आपकी यादों को और लेखन को सर माथे पर क्या कहूं इसी एक सितम्बर को अपनी माँ पर एक पोस्ट लिखी है देखें ...आभारविधुल्लताhttps://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-10045188389867562742009-11-24T10:57:20.061+05:302009-11-24T10:57:20.061+05:30माँ तो माँ ही है जैसी भी हो .... जिस उम्र की हो .....माँ तो माँ ही है जैसी भी हो .... जिस उम्र की हो ........ उसका साथ होना ही हिम्मत दे जाता है ............ अपनी परवा न कर सब क ख्याल बार माँ ही रख सकती है ...... बहुत मार्मिक पोस्ट है आपकी .........दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-66718721588855398822009-11-24T09:58:01.036+05:302009-11-24T09:58:01.036+05:30माँ ही एक ऐसी है जिसे हर साँ स के साथ याद किया जात...माँ ही एक ऐसी है जिसे हर साँ स के साथ याद किया जाता है और बेटिओं के लिये तो मायका माँ के साथ ही होता है मार्मिक अभिव्यक्ति है । शुभकामनायें आशीर्वाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-6221135906212446382009-11-24T09:35:09.056+05:302009-11-24T09:35:09.056+05:30माँ तो माँ ही है, उस से अधिक कोई नहीं। उन का विदा ...माँ तो माँ ही है, उस से अधिक कोई नहीं। उन का विदा होना सब से बड़ी रिक्तता देता है। ऐसा ही जैसे सर से छत छिन गई हो।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2126047305521961019.post-28950926152706830912009-11-24T09:10:34.303+05:302009-11-24T09:10:34.303+05:30‘मां जिस रूप में भी थीं, चाहे जितनी बीमार थीं, थीं...<i>‘मां जिस रूप में भी थीं, चाहे जितनी बीमार थीं, थीं तो एक संबल के रूप में । बहुत बड़ा सहारा थीं वो । पूरे परिवार को एक सूत्र में जोड़ने वाली थीं । उनके जाने से वो संबल टूट गया । वो सूत्र भी कमज़ोर हो गया, जिससे पूरा परिवार जुड़ा हुआ था ।</i> <br /><br />माँ होती ही ऐसी है।<br /><br />आपने हमें भी भावुक कर दिया।<br /><br />मेरी संवेदनाएँ।<br /><br />शशिभूषण की की कविता वाकई में मर्मस्पर्शी है<br /><i><b>मैं घंटों बिसूरता रहा अकेले घर में</b></i><br /><br />स्तब्ध<br /><br /><a href="http://www.google.com/profiles/bspabla" rel="nofollow"> बी एस पाबला</a>Anonymousnoreply@blogger.com