Sunday, February 1, 2009

वो जमुना का पानी, वो इलाहाबाद की यादें ।


बात उस समय की है, जब मैं अपने मायके इलाहाबाद पहली बार अपने पतिदेव को लेकर गई । यूं तो इलाहाबाद का चप्‍पा-चप्‍पा मेरा घूमा हुआ है, बल्कि यूं कहें कि इलाहाबाद का चप्‍पा-चप्‍पा मेरी रग-रग में....मेरी सांसों में बसा है । लेकिन इनके साथ इलाहाबाद घूमने का आनंद अनोखा था । पहले दिन तो हम दुपहिया वाहन से घूमे....आनंद भवन, भरद्वाज आश्रम, विश्‍व-विद्यालय, कंपनी-बाग़ वग़ैरह ।

दूसरे दिन तय किया कि पतिदेव को सायकिल-रिक्‍शे की सवारी करवाएंगे और यहां की मशहूर चीज़ें खिलवायेंगे, जैसे लोकनाथ की लस्‍सी, चाट-चटपटे, दमआलू और सि‍विल लाइंन्‍स का डोसा वग़ैरह । बहरहाल...भैया-भाभी और मां की तमाम नसीहतों के साथ हम घर से रवाना हुए, सायकिल-रिक्‍शे पर चढ़े और निकल पड़े इलाहाबाद की सड़कों और गलियों की सैर करने । आप ज़रा कल्‍पना कीजिए....सर्दी का मौसम.....गुनगुनी नर्म-धूप, ठंडी हवा की सुखद छुअन, गली के मोड़ पर बैठे चुरमुरे वाले से दो चुरमुरे बनवाए । रिक्‍शे पर सवार होकर चुरमुरे के चटखारे लेकर चल पड़े ।

अहा...आंखों के सामने फिर तिर आया है सुंदर पूरा इलाहाबाद, जमना बैंक रोड से रिक्‍शा गुज़र रहा है । एक ओर मंद रफ्तार में चलते हुए वाहन । दूसरी तरफ मंथर गति से बहती हुई जमना नदी........जमना जी को छूकर जो ठंडी हवा आ रही है वो कानों में जैसे कोई सुंदर गीत गा रही है । हम दोनों अनायास ही मुस्‍कुराए और बतायाए जा रहे हैं । जो लोग इलाहाबाद नहीं गए उन्‍हें बता दें कि जमना-बैंक रोड के एक तरफ जमना जी अपनी रफ्तार से बहती हैं । ये सड़क काफी ऊंची है । और सड़क और जमना जी के बीच में जो ढलान वाला हिस्‍सा है, उसमें क़तार से जगह जगह चूड़ी बिंदी टिकुली और छोटी छोटी पूजा सामग्री वाली दुकानें, मंदिर और मछुआरों के छोटे-मोटे इक्‍का-दुक्‍का झोपड़ीनुमा घर हैं । जमना के किनारे स्थित इन मंदिरों से हर वक्‍त भजन के सुर गूंजते रहते हैं । आप जब भी उधर से गुजरें, तो ख़ासतौर पर हरिओम शरण का वो भजन...'दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया' और 'रामजी के नाम ने तो पाथर भी तारे' या फिर अनूप जलोटा का वो भजन...'तन के तंबूरे में' और भी तमाम हनुमान स्‍तुति या बजरंग बाण आपको सुनने को मिल जायेंगे ।

यमुना के किनारे एक तरफ भक्ति-रस में डूबा संसार है तो दूसरी तरफ जमना-बैंक रोड के समानांतर घनी बस्‍ती है । ढलान-नुमा गलियों गलियों में बस बहुत पुराना इलाक़ा । जो कीडगंज के नाम से मशहूर है । और कीडगंज से सटा हुआ बहुत पुराना मुहल्‍ला मुट्ठीगंज और बलुआघाट । और कीडगंज में ही बीच वाली सडक पर चाट और गुलाबजामुनों की दुकानें हैं । वहां के कुल्‍हड़ों में खाए जाने वाले गुलाब-जामुन मुंह में कुछ अलग ही मिठास घोलते हैं । और उसी बीच वाली सड़क पर 'बेनी' की समोसों वाली दुकान थी । जिसके ( आलू और मटर वाले ) समोसे बड़े मशहूर थे । जिन्‍हें हम भाई-बहन खूब चटखारे लेकर खाया करते थे । इस वक्‍त भी उन्‍हें याद करके मुंह में पानी आ रहा है । अब पता नहीं वो दुकान है या नहीं ।

इन्‍हीं गलियों के बीच-बीच में पंडों के बड़े-बड़े घर हैं जिनमें आपको चांदी से सजी बग्घियां देखने मिल सकती हैं । मतलब ये कि उनकी रईसी भरपूर है । यहीं पर अखाड़े में पहलवानी करते पंडे भी दिख जायेंगे । बहरहाल, हम जमना बैंक रोड के किनारे फैली बस्तियों का नज़ारा  देखते हुए, कैंट एरिया को पार करते हुए, मिन्‍टो पार्क देखते हुए पहुंचे मनकामनेश्‍वर मंदिर । जो ठीक जमना जी की गोद में स्थित है । जहां पूजा करके असीम शांति मिलती है । इसी मंदिर से सटा हुआ अकबर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक किला है । जिसका निर्माण 1584 में हुआ था । मंदिर के ठीक बाहर पत्‍थर की चौकीनुमा एक जगह पर हम बैठे । बंधी हुई गोमाता से थोड़ा बोले-बतियाए । वहीं कुछ तस्‍वीरें खींची और सीढियां उतरते हुए पहुंच गये जमना जी के पावन-स्‍पर्श हेतु । मंदिर के नीचे बनी सीढियां जमना जी के पावन स्‍पर्श से रोज़ सराबोर होती हैं । हम भी वहां घंटों बैठे और दूर तक बहती हुई जमना नदी को निहारते रहे । तब तक सूरज भी पश्चिमायन हो चुका था ।

सर्दी के तीसरे पहर की नरम धूप जमना तट पर सेंकते हुए मुझे याद आ गयी ( शायद विद्यानिवास मिश्र की ) वो कविता--'सूप पर पूस की धूप' । और मैंने सूप में तो नहीं लेकिन अपने मन में इस पूस की धूप को खूब गहराई तक समेट लिया, जिसमें पूस की धूप के साथ साथ पूरा इलाहाबाद शहर, अपनों की यादें बातें सब कुछ तरोताज़ा कर लिया । इससे पहले कि शाम ढले हम रवाना हो गए लोकनाथ के लिए ।

लोकनाथ की सैर से पहले इलाहाबाद के उस नामचीन नए ब्रिज का जिक्र करना जरूरी है जिस पर एक दिन पहले हम स्‍कूटर से सैर कर चुके थे । वो इलाहाबाद का अनोखा ब्रिज देश का बहुप्रशंसित ब्रिज माना जाता है । जिस पर चलने, घूमने, बैठने और खड़े होकर तस्‍वीर खिंचवाने का मज़ा अकथनीय है । jamna bridge ब्रिज के किसी भी छोर पर खड़े हो जाईये, दूर तक फैला जमना का हिलोरें मारता हुआ, कल-कल करता हुआ जल देखा जा सकता है । आप जब भी इलाहाबाद जाएं तो इस नये पुल पर जरूर जाएं । यहां बैठे एक देहाती दुकानदार से चुरमुरे और मूंगफली लेने से हम खुद को रोक नहीं पाए । jamna bridge1ये सब चल ही रहा था तब तक हमारे भईया भी यहीं पहुंच गए, और फिर तो कविताएं सुनने-सुनाने का वो दौर शुरू हुआ जो अंधेरा होने के बाद ही थमा । 

दरअसल इलाहाबाद ऐसा शहर है जहां हर मोड़ नुक्‍कड़ पर अपने और आत्‍मीय मिल ही जाते हैं, घंटों खड़े होकर बोलने बतियाने के
लिए । अगली कड़ी मैं मैं आपको बताऊंगी लोकनाथ में चटखारे लेने वाले उस यादगार दिन के बारे में । 

20 comments:

  1. सखी सहेली जैसे कार्यक्रम मे आपकी आवाज तो सुनी है . आज आपका इलाहाबाद भ्रमण पसंद आया . अभी वहां गया था ढंग का खाना नही मिला सिविल लाइंस भी घुमा पिज्जा ,बर्गेर संस्कति हावी हो रही है आपके शहर में

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  2. प्रयाग की जानकारी अच्छी लगी. वैसे गए तो हैं लेकिन किसी स्थानीय से सुनना अच्छा लगता है. अब देखिये धीरू भाई को अच्छा खाना तक नहीं मिला आपके मायके में. अब बता दीजिये की नाश्ते में कहाँ जन चाहिए, खाने के लिए कौन सी जगह अच्छी है वगैरह जिससे की आगे इलाहाबाद जाने वालों को शिकायत का अवसर न मिले. आभार.

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  3. इलाहाबाद ki purani yad taza ho gayi.

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  4. अपना शहर सभी को नौस्टैल्जिक करता है.. आपको भी किया, कुछ बुरा नहीं..
    मुझे भी पटना हमेशा याद आता है.. गंगा का किनारा, बेलो रोड, अशोक राजपथ, डाकबंगला चौराहा, मौर्यालोक.. क्या क्या याद करूँ?
    आपके अगले पोस्ट का इन्जार है.. :)

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  5. आपका लेखन पढ़ कर लगा कि आप तो यहां की नेटिव हैं और हम हैं अतिथि मात्र।
    मैने इलाहाबाद देखा/जिया ही नहीं!

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  6. इलाहाबाद के बारे में बहुत सुंदर जानकारी.....अच्‍छा लिखती हैं आप...

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  7. इलाहाबाद के बारे में जानकारी अधिक नहीं है। चलिए आप से ही जानना आरंभ करते हैं।

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  8. कहते है हुस्न कैसा भी हो बयाँ करने वाले की कला पर निर्भर करता है की वह कैसे और किन शब्दों से बयाँ करता है. खूबसूरती किसी वस्तु में नहीं होती और बयाँ करने वाले की जबान में होती है. शहर तो सभी बदसूरत या खुबसूरत होते हैं . ... देखने वाली बात यह है की बयाँ करने वाला क्या कहता है.... मैं कोई भी लेखक का यात्रावृतांत पढ़ता हूँ तो आँखों के सामने फ़िल्म सी चल पड़ती है . यहाँ भी व्ही हो रहा है. पर वहां जा कर कुछ और पता हूँ.

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  9. nice post-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  10. वैसे अब इलाहाबाद मे भी भीड़-भाड़ होने लगी है पर फ़िर भी इलाहाबाद तो इलाहाबाद ही है । अरे ममता आख़िर हम भी तो इलाहाबादी है न । :)

    इलाहाबाद के बारे मे पढ़कर अच्छा लगा ।

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  11. Your writings reflect your longings for your native place. & Why not? Native places make us nostalgic. Homes are always sweet...!

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  12. तीर्थ राज प्रयाग को आत्मीयता से बयान किया है आपने बहुत अच्छा लगा पढकर
    देखिये कब वहाँ की सैर हो !!
    स्नेह,
    - लावण्या

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  13. main aaj bahut khush hoon...
    Pata hai kyun??
    kyunki aaj pehli baar aapke blog par pahunch gaya , yun hi bhatakte bhatakte...
    bahut achha laga...
    aapse ek guzarish hai...
    please apna email id mujhe de..
    mujhe aapko ek jaruri (utni bhi nahi hai...some nostalgic stuffs)baat batani hai..
    shayad aapko jaankar achha lage...

    aapke sukhad bhawishya ki kamna...

    welcome regards...

    awdhesh@ymail.com

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  14. अरे ममता जी....!!! धन्यवाद देती हूँ ममता दूरदर्शन का जहाँ के कमेंट से आप तक पहुँच पाई....! आप ब्लॉगजगत में हैं और मुझे पता नही...! खैर ये तो मेरी ही बेवकफी है..! अब मिली हैं तो मिलती ही रहूँगी...!

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  15. ममताजी, आज ही मैंने युनुस जी का ब्लॉग देखा और आपका भी .आपदोनों को रेडियो पर खूब सुना है जब हम इलाहबाद में थे .मुझे नहीं मालूम था की आप वहीं की हैं .मैंने अपनी पढ़ाई इसी विश्वविद्यालय से की है . यह शहर मेरी जन्भूमि तो नहीं कर्मभूमि अवश्य है .यहाँ से मेरा नाता अभी भी जुड़ा है और मैं हमेशा जुड़ा ही रखूंगी .आपकी यह पोस्ट पढ़कर यादें तजा हो गयीं .

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  16. आपको विविध भारती पर रोज सुना करता था जब गाँव में रहता था. आप, युनुस जी और कमल जी मेरे फेवरिट एंकर्स हुआ करते थे. रेडियो सुनने के लिए कई बार पिटाई भी खाई. दिल्ली आने के बाद कुछ तो व्यस्तता और कुछ MW और FM पर विविध भारती के उपलब्ध न होने और और SW पर सिग्नल ठीक न आने कारण नहीं सुन पाता हूँ. पर बचपन और किशोरावस्था में सुनी आपकी आवाज की मिठास अब तक यादों में बसी है. आज अचानक घूमते घूमते ब्लॉग पर पहुँच गया. बता नहीं सकता कितनी खुशी हुई.

    किसी ब्लॉग पर पढा की आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. मेरी तरफ से आपको और युनुस जी को ढेरों बधाइयां.

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  17. KYA NARI KE PAS SHEEL HOTI HE PURUSH KE PAS NAHI?meri ray niche& APPKI RAY >INTEZAR RAHEGA>>>>>>>>>>>


    sheel to istri-purush dono ki hoti he magar hamne yani ki samaj ne kabhi samjha hi nahi,thik buniyad ki tarah jamin me dava hota koi iski taraf dekhta bhi nahi .najar aata he to bas mahlen jo niche ki foundation pe tiki hoti he.hamare parivar ne purush ko maan -samman dene ki jaruri nahi samjha.ladko ka apmaan mahaj ek jaadu he jo turant khatam ho jata he .kisi mahila ya ladki ne kabhi ladko ya purush ko uchit samman nahi dete paya.vo to bas yahi samajhti he ladke ek aisa patthar he jise baar-baar uchhalo use chot nahi lagti aur lagti he to dard nahi hota aur hota he to ho iski parvah koi naari kyon kre kyonki emotional atyachaar-balatkar karna jaise ladki ka param kartav heaur janmsidhdh adhikaar bhi

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  19. Testing completed.. Now its time to execute.. :)

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  20. जी हाँ आप का अलाहाबाद है ही इतना ख़ूबसूरत शहर , एक बार किस्सी काम से जाना हुआ था वहां दिल को छु गया था, जितना सुना था उससे कहीं ज्तादा खुबसूरत था ,मोती लाल नेहरु इंजीनियरिंग कॉलेज के पीछे इक आश्रम था जहाँ से संगम दीखता था , क्या खुबसूरत नज़ारा था , पूरा शहर एक खुबसूरत एहसास है .

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