अभी अलविदा ना कहो दोस्तो--महेंद्र कपूर से रेडियोसखी की वो बतकही ।
टेलीविजन के चैनल बदलते हुए जैसे ही खबर सुनी के महेंद्र कपूर नहीं रहे, हाथ एक बारगी थम गया । आंखें परदे पर ठिठक गयीं । खबर मिली कि वो चौहत्तर बरस के थे । उन्हें सन 1968 में फिल्म उपकार के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था । वो लाहौर में जन्मे थे सन 1934 में । उन्हें तीन बार फिल्म-फेयर मिले थे आदि आदि ।
ये जानकारियां एक तरफ थीं । और मेरा मन एक तरफ़ ।
मुझे हमेशा से लगता आया है कि हमारे यहां टेलीविजन को ठीक से श्रद्धांजली देते भी नहीं आता । फटाफट जो समझ में आया वो दर्शकों के सामने परोस दिया जाता है । किसी भी विषय के विशेषज्ञ होते नहीं, इसलिए आनन फानन में लिखी चीज़ें ठेल दी जाती हैं ।
मेरी आंखें नम हो गयीं । मन आर्द्र हो उठा । क्योंकि मैं भी महेंद्र कपूर की बड़ी प्रशंसिका हूं । उनके साथ मेरी बड़ी गहरी यादें हैं । वे आए थे विविध भारती के स्टूडियो करीब दो ढाई बरस पहले । थोड़े बहुत अस्वस्थ थे लेकिन देखने में एकदम जोशीले । उनकी बातें से उत्साह छलकता था । सफेद झक्क कुर्ता पैज़ामा । ऊपर से स्लेटी रंग की सदरी ।
मैंने उनका पैर छुआ । आर्शीवाद लिया । स्टूडियो में गए और रिकॉर्डिंग शुरू हुई । शुरूआत में ये तय हुआ था कि इंटरव्यू एक घंटे का ही होगा । लेकिन जब महेंद्र कपूर ने अपनी यादें हमारे साथ बांटनी शुरू कीं तो लगा कि एक घंटे के दायरे में उन्हें महदूद करना नाइंसाफी होगी । इसलिए इस बातचीत को समय के दायरे से आज़ाद कर दिया गया । ताकि महेंद्र जी की जितनी मरज़ी हो, अपनी यादों के ख़ज़ाने से निकालकर उतने अनमोल मोती हमें सौंपते जाएं ।
बातचीत उनके एकदम बचपन से शुरू हुई थी । फिर उन्होंने बताया कि कॉलेज के ज़माने में गायकी के अपने शौक़ की वजह से उन्हें किस क़दर शोहरत मिली थी । महेंद्र कपूर के गाने इतने सुने थे, उन्हें इतना गुनगुनाया था कि अचानक जब उनसे लंबे इंटरव्यू की बारी आई तो जैसे मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि 'मेरे देश की धरती', 'है प्रीत जहां की रीत सादा', 'दुल्हन चली', 'अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे' जैसे बेहद लोकप्रिय देशभक्ति गीत जो हमें घुट्टी में मिले थे, उन्हें गाने वाले महेंद्र कपूर मेरे सामने हैं ।
उनकी सहजता और सरलता वाक़ई देखने और समझने लायक़ थी । उनका हर वाक्य 'ममता जी' से शुरू होता था, मैं मंत्रमग्ध थी, भावविभोर थी । वो इस क़दर अच्छे और सच्चे थे कि अपनी कमज़ोरियों और परेशानियों के बारे में भी खुले दिल से बताया । जब मैंने 'नवरंग' का जिक्र छेड़ा और संगीतकार सी. रामचंद्र का नाम लिया तो वो बच्चों की तरह बोल उठे--अरे बाप रे बाप । अन्ना साहब । बाप रे । वो बहुत ही सख्त म्यूजिक डायरेक्टर थे । उन्होंने ये भी बताया कि फिल्म 'नवरंग' की रिकॉर्डिंग के दौरान गाने के बीच में आकर उन्होंने डांटा था, महेंदर ये क्या किया । और मैं धक्क रह गया था । देखो उनके नाम से मैं आज भी डर गया हूं । और इस तरह से अन्ना साहब से जुड़े कई वाकये सुनाए थे । खैर उनकी बातचीत के इस सिलसिले को ब्यौरेवार और विस्तार से अभी लिखने लगूंगी तो बतकही जरा लंबी हो जायेगी । कभी विविध भारती पर 'उजाले उनकी यादों के' शीर्षक से इस लंबी बातचीत को ज़रूर सुनिएगा ।
हां तो मैं कह रही थी कि बातें रोचक होती जा रही थीं, उनका गला बैठता जा रहा था और उन दिनों मुझे भी खूब कसकर सर्दी हुई थी । लेकिन उनकी बातों के सामने मुझे अपने गले का ज़रा भी ख्याल नहीं था । हां उनके गले का ख्याल करते हुए कई बार उन्हें चाय परोसी गई । मैंने उनके लगभग हर मशहूर गाने का जिक्र छेड़ा और उन्होंने उसकी रिकॉर्डिंग से जुडे किस्से तफसील से बताए । उन्होंने बड़े मज़े लेकर बताया कि किशोर कुमार के साथ 'विक्टोरिया नंबर दो सौ तीन' के गाने की रिकॉर्डिंग में कितनी हुड़दंग हुई थी । किशोर दा थे कि संभल ही नहीं रहे थे ।
महेंद्र कपूर ने सीमा पर तैनात फौजियों के लिए कई शोज़ किये थे । उनकी यादें थीं कि लगातार शबाब पर चढ़ती जा रही थीं । यहां तक कि एक बार इंटरव्यू खत्म करने के बाद हम स्टूडियो से बाहर भी आ गए थे कि अचानक उन्हें याद आया कि आशा भोसले और लता मंगेशकर से जुड़ी कुछ बातें तो छूट गयी हैं । रात के दस बज रहे थे । इंटरव्यू शुरू हुए चार घंटे हो चुके थे । वो काफी थक चुके थे । लेकिन फिर भी उन्होंने कहा, चलो दोबारा करते हैं । हम दोबारा बैठे और दोबारा बतकही की ।
किसी बेहद कामयाब व्यक्ति का इतना सहज और सरल होना हमेशा अचरज में डालता है । उन्हें विविध भारती के स्टूडियो से विदा करते करते रात के पौने ग्यारह बज चुके थे । उनकी यादों का सिलसिला विदा होने तक जारी था । उन्होंने दोबारा बहुत सारी बातें करने के लिए आने का वादा किया था ।
अब ये वादा कभी पूरा नहीं होगा ।