Saturday, September 5, 2015

जिन्‍होंने सिखाया जीवन का पाठ


यूं तो कुछ खास असवर के लिए कोई एक दिन निर्धारित कर देने से सिर्फ वो दिन ही महत्‍वपूर्ण नहीं हो जाता, कुछ खास अवसर, कुछ खास बातें कुछ खास सीख, हर रोज़ हमारे साथ साए की तरह चलती हैं। आज

शिक्षक दिवस पर अपनी पहली शिक्षिका, अपनी मां की दी हर सीख याद आ रही है। उनका सिखाया जीवन का हर पाठ आज भी मुखाग्र है। मेरे स्‍मृति-पट पर एक और चेहरा बार-बार अंकित हो रहा है। कुछ स्‍मृतियां धूप-छांव की तरह मन के गलियारे में आवाजाही करती हैं।

इलाहाबाद, क्रॉस्‍थवेट गर्ल्स कॉलेज की मिस पूर्णिमा चतुर्वेदी आज बहुत याद आ रही हैं। वो हमें संस्‍कृत पढ़ाती थीं। उन्‍होंने अपनी शिक्षा के ज़रिए जीवन के तमाम पाठ पढ़ाए। उन्‍होंने जीवन की शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्‍यों की भी शिक्षा दी।

वो शुद्ध शब्‍द और उत्‍कृष्‍ट भाषा पर बहुत ज़ोर देती थीं। संस्‍कृत का उच्‍चारण या संधि-विच्‍छेद अगर ज़रा-भी इधर-उधर हुआ तो बहुत डांटती भी थीं। उनसे हम सब छात्राएं डरती भी थीं, उन्‍हें खूब प्‍यार करती थीं। उनका आदर भी करती थीं। यहां तक कि उन्‍हीं की तरह भाव-भं‍गिमा भी बनाती थीं। उन्‍हीं की तरह चलाने की भी कोशिश करती थीं। आज सोचकर हंसी आती है, कि किस तरह घर आकर हम, कई बार आइने के सामने, पूर्णिमा मिस बनकर उनकी हू-ब-हू नकल करते थे। आज जब मैं माइक्रोफ़ोन के सामने बोलती हूं, भूले से कभी उच्‍चारण दोष हो जाए या कहीं टंग-स्लिप कर जाए, तो उनका सख्‍त चेहरा सामने आ खड़ा होता है। सच कहें तो एक-एक शब्‍द शुद्ध और स्‍पष्‍ट बोलना उन्‍होंने ही सिखाया।

अब वो पंक्तियां बरबस ही कंप्‍यूटर के स्‍क्रीन पर सामने आ गयी हैं, 'गुरू गोबिंद दोऊ खड़ें, काके लागू पांय, बलिहारी गुरू आपने, जिन गोबिंद दियो बताए'। आज अवसर बड़ा सुखद है। दोनों को एक साथ नमन करें। कंस रूपी बुराई का नाश जब श्रीकृष्‍ण ने किया तो ये कहां सोचा होगा, आने वाली पीढियों में फिर-फिर जन्‍म लेंगे कंस....जन्‍माष्‍टमी पर आज बंसी बजैया के नटखट बाल-रूप को याद करते हैं। वो रूप जिसने दिया प्रेम और स्‍नेह का संदेश।

बहरहाल...स्‍मृति के गलियारों में आज मेरे साथ हैं, मेरी पहली गुरू मेरी मां, पूर्णिमा चतुर्वेदी मिस और मेरे देवेंद्र भैया- जिन्‍होंने मुझे लिखना सिखाया। सभी को शिक्षक-दिवस और जन्‍माष्‍टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं।