Sunday, September 28, 2008

अभी अलविदा ना कहो दोस्‍तो--महेंद्र कपूर से रेडियोसखी की वो बतकही ।


टेलीविजन के चैनल बदलते हुए जैसे ही खबर सुनी के महेंद्र कपूर नहीं रहे, हाथ एक बारगी थम गया । आंखें परदे पर ठिठक गयीं । खबर मिली कि वो चौहत्‍तर बरस के थे  । उन्‍हें सन 1968 में फिल्‍म उपकार के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ था । वो लाहौर में जन्‍मे थे सन 1934 में । उन्‍हें तीन बार फिल्‍म-फेयर मिले थे आदि आदि ।

ये जानकारियां एक तरफ थीं । और मेरा मन एक तरफ़ ।
मुझे हमेशा से लगता आया है कि हमारे यहां टेलीविजन को ठीक से श्रद्धांजली देते भी नहीं आता । फटाफट जो समझ में आया वो दर्शकों के सामने परोस दिया जाता है । किसी भी विषय के विशेषज्ञ होते नहीं, इसलिए आनन फानन में लिखी चीज़ें ठेल दी जाती हैं ।

मेरी आंखें नम हो गयीं । मन आर्द्र हो उठा । क्‍योंकि मैं भी महेंद्र कपूर की बड़ी प्रशंसिका हूं । उनके साथ मेरी बड़ी गहरी यादें हैं । वे आए थे विविध भारती के स्‍टूडियो करीब दो ढाई बरस पहले । थोड़े बहुत अस्‍वस्‍थ थे लेकिन देखने में एकदम जोशीले । उनकी बातें से उत्‍साह छलकता था । सफेद झक्‍क कुर्ता पैज़ामा । ऊपर से स्‍लेटी रंग की सदरी । 

मैंने उनका पैर छुआ । आर्शीवाद लिया । स्‍टूडियो में गए और रिकॉर्डिंग शुरू हुई । शुरूआत में ये तय हुआ था कि इंटरव्‍यू एक घंटे का ही होगा । लेकिन जब महेंद्र कपूर ने अपनी यादें हमारे साथ बांटनी शुरू कीं तो लगा कि एक घंटे के दायरे में उन्‍हें महदूद करना नाइंसाफी होगी । इसलिए इस बातचीत को समय के दायरे से आज़ाद कर दिया गया । ताकि महेंद्र जी की जितनी मरज़ी हो, अपनी यादों के ख़ज़ाने से निकालकर उतने अनमोल मोती हमें सौंपते जाएं ।

बातचीत उनके एकदम बचपन से शुरू हुई थी । फिर उन्‍होंने बताया कि कॉलेज के ज़माने में गायकी के अपने शौक़ की वजह से उन्‍हें किस क़दर शोहरत मिली थी । महेंद्र कपूर के गाने इतने सुने थे, उन्‍हें इतना गुनगुनाया था कि अचानक जब उनसे लंबे इंटरव्‍यू की बारी आई तो जैसे मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि 'मेरे देश की धरती', 'है प्रीत जहां की रीत सादा', 'दुल्‍हन चली', 'अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे' जैसे बेहद लोकप्रिय देशभक्ति गीत जो हमें घुट्टी में मिले थे, उन्‍हें गाने वाले महेंद्र कपूर मेरे सामने हैं ।

उनकी सहजता और सरलता वाक़ई देखने और समझने mahendra_kapoor लायक़ थी । उनका हर वाक्‍य 'ममता जी' से शुरू होता था, मैं मंत्रमग्‍ध थी, भावविभोर थी । वो इस क़दर अच्‍छे और सच्‍चे थे कि अपनी कमज़ोरियों और परेशानियों के बारे में भी खुले दिल से बताया । जब मैंने 'नवरंग' का जिक्र छेड़ा और संगीतकार सी. रामचंद्र का नाम लिया तो वो बच्‍चों की तरह बोल उठे--अरे बाप रे बाप । अन्‍ना साहब । बाप रे । वो बहुत ही सख्‍त म्‍यूजिक डायरेक्‍टर थे  । उन्‍होंने ये भी बताया कि फिल्‍म 'नवरंग' की रिकॉर्डिंग के दौरान गाने के बीच में आकर उन्‍होंने डांटा था, महेंदर ये क्‍या किया  । और मैं धक्‍क रह गया था । देखो उनके नाम से मैं आज भी डर गया हूं । और इस तरह से अन्‍ना साहब से जुड़े कई वाकये सुनाए थे । खैर उनकी बातचीत के इस सिलसिले को ब्‍यौरेवार और विस्‍तार से अभी लिखने लगूंगी तो बतकही जरा लंबी हो जायेगी । कभी विविध भारती पर 'उजाले उनकी यादों के' शीर्षक से इस लंबी बातचीत को ज़रूर सुनिएगा ।

हां तो मैं कह रही थी कि बातें रोचक होती जा रही थीं, उनका गला बैठता जा रहा था और उन दिनों मुझे भी खूब कसकर सर्दी हुई थी । लेकिन उनकी बातों के सामने मुझे अपने गले का ज़रा भी ख्‍याल नहीं था । हां उनके गले का ख्‍याल करते हुए कई बार उन्‍हें चाय परोसी गई । मैंने उनके लगभग हर मशहूर गाने का जिक्र छेड़ा और उन्‍होंने उसकी रिकॉर्डिंग से जुडे किस्‍से तफसील से बताए । उन्‍होंने बड़े मज़े लेकर बताया कि किशोर कुमार के साथ 'विक्‍टोरिया नंबर दो सौ तीन' के गाने की रिकॉर्डिंग में कितनी हुड़दंग हुई थी । किशोर दा थे कि संभल ही नहीं रहे थे ।

महेंद्र कपूर ने सीमा पर तैनात फौजियों के लिए कई शोज़ किये थे । उनकी यादें थीं कि लगातार शबाब पर चढ़ती जा रही थीं । यहां तक कि एक बार इंटरव्‍यू खत्‍म करने के बाद हम स्‍टूडियो से बाहर भी आ गए थे कि अचानक उन्‍हें याद आया कि आशा भोसले और लता मंगेशकर से जुड़ी कुछ बातें तो छूट गयी हैं । रात के दस बज रहे थे । इंटरव्‍यू शुरू हुए चार घंटे हो चुके थे । वो काफी थक चुके थे । लेकिन फिर भी उन्‍होंने कहा, चलो दोबारा करते हैं । हम दोबारा बैठे और दोबारा बतकही की  ।

किसी बेहद कामयाब व्‍यक्ति का इतना सहज और सरल होना हमेशा अचरज में डालता है । उन्‍हें विविध भारती के स्‍टूडियो से विदा करते करते रात के पौने ग्‍यारह बज चुके थे । उनकी यादों का सिलसिला विदा होने तक जारी था  । उन्‍होंने दोबारा बहुत सारी बातें करने के लिए आने का वादा किया था ।

अब ये वादा कभी पूरा नहीं होगा ।

11 comments:

  1. वाकई लाजबाब थे महेन्द्र कपूर.. आपने बातचीत का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया .. आभार.

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  2. यहां आपने बहुत अच्छी चर्चा की है। ईंतजार है उस बतकही का....हो सके तो तफसील से उस बातचीत को पेश करें....।

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  3. उनकी सहजता और सरलता वाक़ई देखने और समझने लायक़ थी । वो इस क़दर अच्‍छे और सच्‍चे थे कि अपनी कमज़ोरियों और परेशानियों के बारे में भी खुले दिल से बताया ।
    बढ़िया लिखा है आपने। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
    www.gustakhimaaph.blogspot.com
    पर ताकझांक के लिए आमंत्रण स्वीकार करें।

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  4. महेन्द्र कपूर साहब की आवाज खास थी जो भावप्रवण गीतों के लिए बहुत उम्दा थी। वे उन के इन्हीं गीतों के गायन के लिए हमेशा स्मरण किये जाते रहेंगे।

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  5. अरे रे .. आपने भावभीनी श्रध्धँजलि देते हुए, (अब स्वर्गीय कहते मन उदास है)
    ऐसे गायक श्री महेन्द्र कपूरजी के निधन का शोकसमाचार दिया और मैँ उनसे हुई वो आखिरी मुलाकात याद कर रही हूँ ~~
    निर्माता निर्देशक श्री बी. आर. चोपडाजी के लिये बनी कई फोल्मोँ का पार्श्व गायन महेन्द्र कपूर ने किया और "महभारत "के लगभग सभी दोहे भी उन्होँने गाये हैँ -
    मेरे पापाजी स्व. पँडित नरेन्द्र शर्माजी ने महाभारत मेँ कई दोहे व प्रमुख टाइटल गीत "अथ श्री महभारत कथा .." भी लिखा है और पापाजी के निधन के बाद, मेरे लिखे हुए १६ दोहे अँकल बी. आर. चोपडाजी ने उस धारावाहिक मेँ शामिल किये जिसे गाने के लिये महेन्द्र कपूरजी सँगीत निर्देशक स्व. राजकमल जी के साथ बी. आर. चोपडाजी की साँताक्रुज़,बम्बई की ओफीस मेँ आये थे और वहीँ उन्होँने मेरा लिखा दोहा गाया था, जिसके शब्द हैँ,
    " बिगडी बात सँवारना,
    साँवरिया की रीत,
    पार्थ, सुभद्रा मिल गये,
    हुई प्रणय की जीत "
    प्रसँग था,अर्जुन द्वारा, सुभद्रा हरण का !
    उस पल को याद करते हुए,
    मेरे नमन !
    - लावण्या शाह

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  6. बहुत दुख: हुआ। महेन्द्र कपूर जी को हार्दिक श्रद्धान्जली।

    "उजालें उनकी यादों के" में उनका साक्षात्कार तो कब का प्रसारित हो गया होगा। आपको समय मिले तो हमें पढ़वा ही दें। आपके ब्लॉग के पाठक आपेक आभारी रहेंगे।

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  7. सर्वप्रथम महेंद्र कपूर साहेब को भावभीनी श्रधांजलि | एक महान व्यक्तित्व के धनि व्यक्ति ,जिन्होंने हिन्दी सिनेमा के के संगीत को अपनी आवाज से एक अलग ऊंचाई प्रदान की |

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  9. ममता जी, मैंने यह ब्लौग अपने ब्लौग रॉल में लगा रखा है, और जबसे लगाया है तब से अभी तक एक बार भी अपडेट नहीं हुआ है.. नये साल में यह एक काम तो कर ही दिजिये.. लगातार लिखते रहिये.. :)
    आपको नव वर्ष कि ढ़ेरों शुभकामनायें.. युनुस जी द्वारा आपकी तरफ से शुभकामनायें मिल चुकी है मुझे.. :)

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  10. आदरणिय श्रीमती ममताजी,
    स्व. महेन्द्र कपूरजी के श्रद्धांजली वाला आपका यह पोस्ट आज यानि दि 17-01-09 के दिन श्री युनूसजी के सौजन्यसे पढ़ पाया । इस लिये स्वाभाविक रूप से मेरे प्रतिभाव भी देर से ही है । इस ब्लोग के लिये देरी से ही सही आप को बधाई । और इस पोस्ट के लिये भी । महेन्द्र कपूर साहब से मिलने पर और उनसे बातें करते वक्त आपके मन में जो बड़े महान कलाकारों की सरलता का आहलादक अहेसास हुआ कुछ: इसी तरह का अहसास विविध भारती के करीब सभी लोगों के लिये मेरे और अन्य श्रोता लोगो के मनमें भी होता है । सब के लिये आप सभी लोग भी स्टार्स ही है ।

    पियुष महेता ।
    सुरत-395001.

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