Thursday, January 22, 2009

पत्‍थरों के शहर में एक मासूम-सी ख़्वाहिश


रविवार की शाम घर पर रहें तो बहुत उबाऊ और उदास-सा लगता है । रविवार की शाम घर से बाहर जायें तो ट्रैफिक और भीड़भाड़ तंग करती है । सारा मुंबई शहर अपने 'वीक-एंड' को रंगीन बनाने के लिए हड़बड़ा-सा भागता दिखता है । सोमवार से शुक्रवार तक दफ्तर की भागदौड़ और 'वीक-एंड' पर.......(यहां के शब्‍दों में कहूं) तो 'एन्‍जॉय' करने की
भागदौड़ । आमतौर पर हम भीड़ से बचते ही हैं । पर इस रविवार पतिदेव ने कहा चलो एक अच्‍छी जगह चला जाए । पतिदेव अपनी योजनाओं में बेहद साहसिक और एडवेन्‍चरस होते हैं । इसलिए मेरा माथा ठनका....कहीं बहुत दूर तो नहीं चलना है ना, वरना लौटते-लौटते देर हो जाए और..........। फिर 'वीकएंड' फीका हो जायेगा । उन्‍होंने कहा कि एकदम पास में चलना है और तुमको मज़ा आ जायेगा ।

'कितनी देर में पहुंच जायेंगे'--मैंने पूछा ।
'साइंटिस्‍ट' महोदय का जवाब था--कुल सात मिनिट । बल्कि इससे भी कम । अब समझ नहीं आया कि इतने नज़दीक कौन-सी ऐसी जगह है, जहां मज़ा आ जाए । बहरहाल...मैंने सोचा कि चलो देखें, महाशय का 'सरप्राइज़' क्‍या है आज । फिल्‍म या थियेटर देखने की तो बाक़ायदा तैयारी करनी होती है, शॉपिंग का कोई 'मूड' नहीं है । किसी मित्र-परिचित के घर जाएं तो भी पहले से 'इन्‍फॉर्म' कर देना अच्‍छा रहता है । वरना दरवाज़े पर लगा 'ताला' मुंह चिढ़ाए तो कितनी खीझ होती है । ख़ैर पहुंचे तो पता चला कि ये ‘plant and flower exhibition’ में लेकर आए हैं । मुंबई महानगर-पालिका की ओर-से हर साल इस तरह की प्रदर्शनी आयोजित की जाती है । जिसमें ना केवल पौधों और वनस्‍पतियों का प्रदर्शन होता है बल्कि उन्‍हें ख़रीदा भी जा सकता है ।

ऐसी जगह पर आप सामान्‍यत: भीड़ की उम्‍मीद नहीं करते । क्‍योंकि ये कोई 'ग्‍लैमरस' आयोजन नहीं होता । लेकिन पहुंचते ही क़तार में लगना पड़ा । मुंबई में वैसे भी हर चीज़ के लिए क़तार होती है । बस से लेकर टॉयलेट तक हर चीज़ के लिए । अब पौधे देखने के लिए भी क़तार । बढि़या प्रदर्शनी थी । हर पौधे का वानस्‍पतिक-नाम लिखा गया था । उसकी विशेषताएं और नाज़-नखरों से परिचित कराने के लिए विशेषज्ञ मौजूद थे । और थी खूब सारी भीड़ ।

हरियाली से मुझे वैसे भी प्‍यार रहा है । असम में पैदा हुई हूं । हरे-भरे पहाड़ों और नैसर्गिक-सौंदर्य से आत्मिक-संबंध रहा है । उस के बाद उत्‍तरप्रदेश के अपने गांव का कच्‍चा-प्राकृतिक-सौंदर्य इस बड़े शहर में खूब-खूब याद आता रहा है । और इलाहाबाद भी । जहां घरों के आगे बगीचे की गुंजाईश होती है ।

जब अपनी ससुराल जाती हूं तो वहां लगे पौधों को देखकर मन ललच जाता है । काश कि ज़मीन पर घर हो..आगे पीछे जगह हो.....जिसमें बड़े ही जतन से बग़ीचा बनाया जाए । एक झूला डाला जाए । जिस पर पींगे भरते हुए पुराने फिल्‍मी गाने सुने जायें । ओह मैं तो सपनों में खो गयी ।

बहरहाल...पौधों की इस प्रदर्शनी को देखकर बग़ीचे की ख्‍वाहिश फिर हरी हो गई है । मुंबई में हम सातवीं मंजिल पर रहते हैं । इतने ऊपर केवल कुछ हैंगिंग पौधे ही लगाए जा सकते हैं । या फिर कुछ छोटे-मोटे गमले रखे जा सकते हैं जिनमें सजावटी पौधे लगाकर मन को तसल्‍ली दी जा सकती है । लेकिन आसमान पर टंगे हम.....बग़ीचे के सपने ही देख सकते हैं । या फिर बग़ीचों के लिए....शहर के तराशे हुए सार्वजनिक पार्कों में जा सकते हैं...बस ।

पौधों की इस प्रदर्शनी में कबूतरों और गौरैयों के लिए बाक़ायदा 'घर' भी बिक रहे थे । जिन्‍हें बगीचों में लगा लीजिये और दूर से पक्षियों की शरारतों को देखिए । सबसे रोचक ये लगा कि कई माता-पिता अपने बच्‍चों को पौधों और फूलों से परिचित कराने यहां लाए थे । वो फूल जिन्‍हें उन्‍होंने अपनी कोर्स की किताबों में देखा था...यहां जीवंत देख रहे थे । उनका संक्षिप्‍त परिचय बच्‍चों को दिया जा रहा था । कुछ लोग....जिनमें हमारे पतिदेव भी शामिल थे...अपने कैमेरों के साथ व्‍यस्‍त थे तस्‍वीरें लेने में । चूंकि भीड़ बहुत ज्‍यादा थी और मुंबई में 'आसमान में टंगे' घरों में रहने वाले लोग बग़ीचों की ख्‍वाहिश में यहां पर आए थे.....इसलिए ख़रीदी जबर्दस्‍त चल रही थी । लोग ख़रीद-खरीदकर अपनी गाडियों में गमले भर रहे थे ।

हमने भी कुछ पौधे ख़रीदे । इस तमन्‍ना में कि काश कभी हमारा भी अपना छोटा सा बग़ीचा हो । पत्‍थरों के शहर में ये है हमारी मासूम सी ख्‍वाहिश जिसे हम पूरा करके ही रहेंगे ।

पतिदेव की खींची तस्‍वीरें ये रहीं ।

  पीपल का बोनसाई

IMG_2111 सजावटी पौधा IMG_2113 कैक्‍टस IMG_2112 मनीप्‍लान्‍ट

IMG_2110 मनीप्‍लान्‍ट कांच के बीकर में

IMG_2101

गोरैया के घर

IMG_2108 गोरैया के घर कहां से ख़रीदें ।

IMG_2109 सजावटी पौधे की रंगत

IMG_2104 मेरा भी बगीचा होता

IMG_2103 महानगर की हक़ीक़त-हैंगिंग गमले

IMG_2102 किसी एक फूल का नाम लो

IMG_2105

'बतकही' कुछ दिनों से वाक़ई 'अनकही' बन गयी थी । इस अनकही को तोड़ने का प्रयास जारी रहेगा ।

17 comments:

  1. सच में पत्थरों के शहर में अब इसी तरह की मासूम khawaishe रह गई हैं चित्र सुंदर लगे यह

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर पोस्ट है पौधों के प्रति इतना समर्पण सराहनीय है


    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    चाँद, बादल और शाम

    ReplyDelete
  3. वाह ही वाह , ममता जी, आपने तो मुझे लगभग पंद्रह साल पुराने दिनों की याद दिला दी, जब मैं भी जीजामाता उध्यान, भायखला में लगी इस एग्ज़िबिशन में परिवार समेत ज़रूर जाया करता था --एक बार तो दो दिन की इसी नुमाइश से पहले रखी गई गार्डनिंग की एक वर्कशाप भी अटैंड कर के इकेबाना वगैर सीखा था -- बहुत अच्छा लगता था . बस तब एक ही तमन्ना हुआ करती थी कि कब बंबई से पिंड छूटे और किसी छोटी जगह पर बदली हो जहां पर ये सब बेल बूटे हों ---लेकिन छोटी जगह पर आने के बाद, अपने सपनों जैसा घर अलाट होने के बाद जहां पर बीसियों तरह के पेड़ हैं, बेल बूटे हैं , फूल हैं ----कभी इतनी फुर्सत ही नहीं लगी कि इन के साथ का लुत्फ उठाया जा सके।
    बहरहाल, आप ने बहुत ही अच्छा एवं रोचक लेख लिखा है. और हम आप के लिये शुभकामनायें करते हैं कि आप का बसेरा ऐसा ही हो जहां पर आप घर के आगे एवं पीछे बागीचे परिवार समेत बैठ कर आनंद उठा सकें. शुभकामनायें। आपकी पोस्ट में वो बच्चों को तरह तरह के बेल बूटे फूल दिखाने वाली बात भी बहुत बढ़िया लगी--हम लोग भी यही सोचा करते थे कि इन बच्चों के नसीब में यह सब इस नुमाइश में ही देखना लिखा है।
    आप की आवाज़ अकसर दोपहर के विविध भारती के कार्यक्रम में सुनता रहा हूं ।

    ReplyDelete
  4. रोचक विवरण. हम भी जब मुंबई जाते हैं तो किसी नर्सरी में ज़रूर जाते हैं ताकि अपने भाइयों के घर (फ्लॅट) को सजाया जा सके. आभार.
    http://mallar.wordpress.com

    ReplyDelete
  5. मुझे भी पौधे बहुत अच्छे लगते हैं ,इन पेड़ पौधों की हरियाली के साथ ही तो जीवन हैं छोटे से फ्लेट में मैंने कुल ५० गमलों में कई पौधे लगा रखे हैं ,उनमे मेरे प्राण बसे हैं ,आपका पौधों के प्रति प्यार देखकर अच्छा लगा ,सारे फोटो बहुत खूबसूरत हैं ,काश एक बगीचा होता हमारा अपना ,जिसमे बैठकर पढ़ते ,गाते बतियाते सच में . हैं न!

    ReplyDelete
  6. फोटो तो बहुत प्यारी आई है ।
    पत्‍थरों के शहर में ये है हमारी मासूम सी ख्‍वाहिश जिसे हम पूरा करके ही रहेंगे ।

    आपकी ख्वाहिश जरुर पूरी हो ।

    ReplyDelete
  7. आपकी पोस्‍ट बहुत अच्‍छी लगी....फोटो देखकर तो मन खुश हो गया....पत्‍थरों के शहर में आपकी मासूम सी ख्‍वाहिश पूरा कर पाने के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  8. सुन्दर पोस्ट...आपकी तमन्ना पूरी हो. सुन्दर चित्र.

    ReplyDelete
  9. फूलोँ और पौधोँ के बीच मुस्कुराती आप,
    बहुत अच्छा लगा देख कर :)
    स्नेहाशिष

    -लावण्या

    ReplyDelete
  10. बहुत ही सुन्दर पोस्ट है

    ReplyDelete
  11. मैं जब सुरत में था, वहां हर साल पौधों और पुस्तकों की प्रदर्शनी एक साथ लगा करती थी। सच मजा आ जाता था।
    अब यहां नवाबों के शहर में ना तो पुस्तकें हैं, ना पेड़ पौधे और ना ही समय।
    पोस्ट बहुत सुन्दर लगी।

    ReplyDelete
  12. क्या संयोग है - मैं अभी अभी एक माली से बात कर के आ रहा हूं - शीतला परसाद। उनसे पार्टटाइम हमारे छोटे से बगीचे को पार्ट टाइम संवारने के लिये तय करने की कोशिश की है
    बहुत बड़ी जरूरत है हरियाली। उसी से मन हरियराता है।

    ReplyDelete
  13. batkahi kar raha hun aap mubai se mai kanpur se .
    mumbai ki paidais hai kanpur ne pala hai
    aaye
    http://batkahi-kap.blogspot.com par aur kho jayee.

    ReplyDelete
  14. यह पोस्ट पढ़कर एक गीत याद आ गया.. पता नहीं क्यों..
    "थोडी सी जमीं, थोडा आसमां.. तिनको का बस एक आशियां.."
    :)
    आप इतने दिनों से गायब थी कि मैं आपका यह पोस्ट देख ही नहीं पाया.. अभी आपका आज वाला पोस्ट(१ फरवरी) देखा तब पता चला कि आपका एक पोस्ट जनवरी में भी आया था.. अपनी बतकही को बक-बक में बदल ही डालिए.. :)
    बिना रुके.. नॉन-स्टाप..

    ReplyDelete
  15. namaste mamata jee
    mai abhishek anand, yunus jee ka deewana hu aur aapaka bhee aapane hal me gulashan ji se vividh bharati ke liye batchit ki bahut achchhi rahi.

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर चित्रण है! में तो लखनऊ में रहकर भी अपने बगीचे के लिए तरस रहा हूँ तो आप तो मुंबई में है, स्वाभाविक ही है! पर बहुत बहुत बढ़े आपने इतना सुंदर चित्रण किया है कि लगा हम लोग भी प्रदर्शनी में पहुच गये हैं!

    ReplyDelete
  17. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर। पूरा घर ही बसा दिया है आपने। गौरेयों का घर बेहद पसंद आया।

    ReplyDelete