Tuesday, October 3, 2017

साठ बरस का सुरीला सफर


आज विविध भारती के साठ वर्ष पूरे हुए। पूरे विविध भारती परिवार को असंख्‍य शुभकामनाएं। क्या कहूं..... लिखने बैठी तो शब्द हवाओं में गूंज रहे हैं, भाषा राग में बदल गई है, जज्‍बात सागर बन गए हैं। उन्‍हें शब्‍दों में बांधना और Facebook के ज़रिए आप सब तक पहुंचाना बड़ा मुश्किल...

Saturday, July 1, 2017

हम तलछट में बसर करते हैं


उसने कहा-"हम तलछट में बसर करते हैं" .. वह बन गया समंदर की सबसे ऊंची लहर..... मैंने कहा "तुम हिमालय की चोटी हो" बहती हवा की तरह बदल गया उसका रुख .... वह सिखाने लगा बारह खड़ी .... हमने जो उठाया काग़ज़ कलम तो कहने लगा ककहरा ... खयाल ये कि .....रखें उसे हाशिये पर या बहाने दें ज्ञान गंगा तथाकथित हिमालय से ..... # आत्म चिंतन .......मम...

Sunday, June 18, 2017

कहानी- जनरल टिकट


ये कहानी 'हंस' के जून 2017 अंक में प्रकाशित हुई है।  आज अचानक ठंड बढ़ गयी है। गुनगुनी, नरम धूप बदन को सहला रही है। दिव्‍या अपनी नोटबुक और किताब लेकर हॉस्‍टल का बरामदा पार करती हुई लॉन में आ गयी है। लॉन के किनारे-किनारे की घास अभी भी गीली है। क्‍यारियों में लगे...