डायरी के कुछ पन्ने--'मां के जाने के बाद' ।
मां के अवसान को मन जैसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाया है । कंप्यूटर पर उनकी तस्वीर देखूं तो अचानक ही 'इनसे' कहने लगती हूं कि मां ऐसा कहती हैं, वो वैसा कहती हैं । 'हैं' से उनके अचानक 'थीं' हो जाने को कैसे स्वीकार करूं । इन दिनों जो डायरी लिखी, उसके पिछले दो अंकों में...